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अफ्रीकी रेगिस्तान पानी से लबालब

भावनाओं में शब्दों
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अफ्रीका में पानी की भारी किल्लत पाई जाती है। रेगिस्तान में अक्सर मरीचिका यानी पानी होने का भ्रम पैदा हो जाता है। मगर अब वैज्ञानिकों का कहना है कि अफ्रीकी रेगिस्तान पानी से लबालब है। बस वह जमीन के ऊपर नहीं है, उसके नीचे है। सूखे द्वीप के नाम से बदनाम अफ्रीका में भूजल के विशाल भंडार बताए गए हैं।

वैज्ञानिकों का कहना है कि अफ्रीका जमीन की सतह पर जितना पानी है, उसका 100 गुना पानी जमीन के नीचे है। उन्होंने इन छिपे संसाधनों का अब तक का सबसे विस्तृत मानचित्र पेश किया है। मगर साथ ही एनवायर्मेटल रिसर्च लेटर्स नाम के जर्नल में प्रकाशित शोधपत्र में कहा गया है कि पानी निकालने के लिए बड़े पैमाने पर खुदाई जल आपूर्ति बढ़ाने का बढिय़ा तरीका नहीं होगा।
बताया जाता है कि अफ्रीका में 30 करोड़ लोगों को पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं है। आने वाले दशकों में आबादी और उसके चलते फसलों के लिए सिंचाई की मांग बढऩे के कारण पानी की मांग में जबरदस्त इजाफा होगा।

वैज्ञानिकों ने अफ्रीका में भूजल भंडारों का यह मानचित्र तैयार किया है। ताजे पानी की नदियों और झीलों में मौसम के मुताबिक बाढ़ आने और सूखे के कारण इस पानी तक लोगों और सिंचाई साधनों की पहुंच सीमित ही है।

फिलहाल कृषि योग्य पांच प्रतिशत जमीन पर ही सिंचाई होती है। अब पहली बार वैज्ञानिकों ने अफ्रीका में जमीन के नीचे चट्टानों में छिपे पानी का विस्तृत विश्लेषण पेश किया है। ब्रिटिश भूगर्व सर्वेक्षण बीजीएस और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन यूसीएल ने अफ्रीका में भूजल की मात्रा और संभावना के बारे में एक विस्तृत मानचित्र तैयार किया है।
इस शोधपत्र के लेखकों में से एक बीजीएस की लेखिका हेलेन बोंसर का कहना है कि अब तक भूजल के बारे में किसी को दूर-दूर तक कोई खयाल नहीं था। वह मानती हैं कि नए मानचित्र से लोगों को इन नई संभावना के बारे में पता चलेगा।
वह कहती है कि उत्तरी अफ्रीका में लीबिया, अल्जीरिया और चाड़ में भूजल के सबसे बड़े भंडार हैं। पूरे इलाके में जलभंडार की गहराई 75 मीटर है जो कि बहुत ही बड़ा भंडार है। सहारा का इलाका सदियों पहले होने वाले जलवायु परिवर्तनों की वजह से रेगिस्तान में तब्दील हो गया। उसके नीचे मौजूद भंडार 5,000 साल पुराने हो सकते हैं।

वैज्ञानिकों के इस शोध का आधार सरकारी भूगर्भीय जल मानचित्र और इस बारे में हुए 283 अध्ययनों से मिली जानकारी है। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह भंडार इतना बड़ा है कि इसके जरिए जलवायु परिवर्तन से होने वाले संभावित बदलावों से भी निपटा जा सकता है।

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