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मन्ना डे अपने समकालीन गायकों में से एक अकेले ऐसे गायक हैï जो संगीत संसार मेïं अब भी मौजूद हैïं। मो. रफी, मुकेश, हेमंत कुमार, तलत महमूद और किशोर दा दुनिया से विदा हो चुके हैं। मन्ना डे ने इंडस्ट्री में संगीत की खस्ता हालत देखकर और अपनी स्थिति भांपकर मुंबई को छोडऩा ही बेहतर समझा। मन्ना डे ने स्वयं एक बार यह स्वीकार किया था कि टॉप पर पहुंचने और बने रहने की उनकी तमन्ना कभी पूरी नहीं हो पाई है।
अब वह बेंगलूर में अपने परिजनों के साथ रहते हैंï। वह अगर कहीं जाते भी हैं, तो सिर्फ बुलावा आने पर। अगर मुंबई आते हैïंं, तो भी मेहमान की तरह। मन्ना डे अपने समय के गायकों में निश्चित तौर पर सबसे प्रतिभाशाली थे, लेकिन आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि उस दौर की तिकड़ी-दिलीप कुमार, देव आनंद और राजकपूर में से सिर्फ राजकपूर ने ही अपने लिए इनकी आवाज का इस्तेमाल किया। वह भी इसलिए कि मुकेश उन दिनों फिल्मों मेïं हीरो बनने की जुगत मेंï लगे हुए थे। तब शंकर-जयकिशन ने मन्ना डे की आवाज मेंï राजकपूर के लिए गीत रिकार्ड किए। वह गीत सुपर हिट भी हुए। उनमें फिल्म चोरी-चोरी के यह रात भीगी-भीगी व आजा सनम मधुर चांदनी मेंï हम और श्री 420 का प्यार हुआ इकरार हुआ है, आज भी लोगों की जुबान पर है। मेरा नाम जोकर, ऐ भाई जरा देख के चलो, जो उस फिल्म का थीम सांग था। इन गीतों को सुनकर हर किसी को लगा था कि मन्ना डे के अलावा और कोई इस गीत को गा ही नहीं सकता था। शंकर-जयकिशन के अलावा और किसी ने यह हिम्मत नहीं दिखाई कि किसी हीरो के लिए इनकी आवाज का इस्तेमाल कर सकें।
सबके लिए गाया: मन्ना डे की आवाज का इस्तेमाल जहां-जहां हुआ, कामयाबी की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ। उन्होंने बलराज साहनी, प्राण, महमूद आदि के लिए गीत गाए, जिन्हें हीरो का दर्जा प्राप्त नहीं था, लेकिन राजेंद्र कुमार के लिए फिल्म तलाश और राजेश खन्ना के लिए आनंद में गीत गाकर सबको चौका दिया। आनंद का गीत जिंदगी कैसी है पहेली हाय, इस फिल्म की कहानी काफी भावुक थी। सीता और गीता में संगीतकार आरडी बर्मन ने धर्मेंद्र के लिए मन्ना डे से एक गीत गवाया था अभी तो हाथ मेंï जाम है तौबा। शंकर-जयकिशन ने एक बार शम्मी कपूर के लिए भी जाने अनजाने मेंï मन्ना डे की आवाज को रिकार्ड किया। गाना था छम छम बाजे रे पायलिया।
कोलकाता-मुंबई : मन्ना डे की आवाज, शैली और संस्कार उनके चाचा के सी डे की देन है। के सी डे भी काफी लोकप्रिय गायक थे। मन्ना डे ने बाउल संगीत, रवींद्र संगीत में भी उन्होंने अपनी अच्छी जगह बनाई। के सी डे ने उन्हेïं टप्पा, ठुमरी, भजन और कव्वाली की भी ट्रेनिंग दी। 1940 मेï के सी डे ने कोलकाता का न्यू थिएटर छोड़ा और सीधे मुंबई आ गए। मुंबई आकर मन्ना डे संगीतकार एच. पी. दास के सहायक बन गए। तब उन्हें धार्मिक फिल्में मिली लेकिन संघर्ष इतना लंबा हो गया कि उनका मन इन सब से ऊब गया। इसी दौरान उन्हेïं मशाल फिल्म मेïं गीत गाने का मौका मिला। ऊपर गगन विशाल गाने ने मन्ना डे के टेलेंट की झलक इंडस्ट्री को दिखा दी। उसके बाद तो मन्ना डे के रास्ते खुल गए। हर तरह के गीत गाए, लेकिन हैरानी की बात यह रही कि इनका करियर ग्राफ उस तरह नहीं बन पाया जिसकी उम्मीद की जा रही थी। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह यह थी कि इनकी धीर-गंभीर-शास्त्रीय आवाज युवा हीरो मेïं फिट नहीं बैठी। इंडस्ट्री मेंï एक चलन रहा है कि जो आवाज उस समय के हीरो मेंï नहीं फिट नहीं बैठ पाती है उसके प्रति लोगों की दिलचस्पी कम हो जाती है।
साथ-साथ गाए : महेंद्र कपूर होï या कैलाश खेर, सब मानते हैï कि मन्ना डे जैसे क्लासिकल सिंगर दोबारा नहीं आए। मन्ना डे के साथ लता मंगेशकर, किशोर कुमार, आशा भोंसले गीता दी ने भी गीत गाए। लता के साथ ये रात भीगी भीगी ये मस्त फिजाएं, आशा के साथ तू छुपी है कहां, किशोर कुमार के साथ एक चतुर नार बड़ी होशियार गाया था। इन गीतों ने लोकप्रियता के झंडे लहराए हैï। युगल गीतों मेï रफी के साथ-साथ आजा सनम मधुर,नैन मिले चैन कहां, मुड़ मुड़ के न देख, जुल्फोï की छटा लेकर सावन की घटा आई,इन गानों की धूम आज भी है।
आवाज नकल नहीं हुई : इंडस्ट्री मेंï बाद में जो भी सिंगर आए, वह सहगल, रफी, मुकेश, किशोर कुमार की आवाज की नकल करके ही आगे बढ़े, लेकिन मन्ना डे की आवाज की नकल का साहस किसी ने नहीं किया। ऐसा इसलिए कि इनकी आवाज से आवाज मिलाना आसान नहीं था। मन्ना डे ने कभी आसान रास्ता नहीïं अपनाया। यह कोई नहीï कह सकता कि मन्ना डे इस किस्म का गीत सही तरह नहीं गा सके। उन्होंने ये इश्क इश्क है जैसी कव्वाली, प्यार हुआ इकरार हुआ है जैसा रोमांटिक गीत, आओ डांस करें जैसा तेज गीत ऐ मेरे प्यारे वतन, जैसा देशभक्ति गीत गाकर गायकी की ऊंचाई दिखाई, वहीïं लागा चुनरी मेïं दाग छुपाऊं कैसे, ए मेरी जोहराजबीï तूझे, फुलगेïदवा न मारो न मारो लगत, जैसे सेमी क्लासिकल गीत गाकर भी सबका ध्यान अपनी ओर खिंचा।
फिर सक्रिय : मन्ना डे मुंबई छोड़ चुके हैïं। जुहू का अपना बंगला बेच दिया है। वे पत्नी के साथ, बेटी के पास बेंगलूर मेïं रहते हैï। प्रहार इनके गाए हुए गीतों की आखिरी फिल्म हैं, लेकिन पिछले दिनोïं वे मुंबई आए थे एक अनाम फिल्म के गीत की रिकार्डिंग के लिए।
पुरस्कार : अपने संगीत के रुपहले सफर में उन्होंने 3500 गाने गाए है। सरकार ने उन्हें 1971 में पद्मश्री अवार्ड, 2005 पद्म भूषण अवार्ड व वर्ष 2007 में दादा साहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया। मन्ना डे ने आनंद प्रकाशन के अंतर्गत वर्ष 2005 मे बांग्ला भाषा में अपनी आत्मकथा जीवनेर जलसाघरे लिखी है। हालांकि बाद में यह आत्म कथा अंग्रेजी, मराठी भाषा में भी प्रकाशित हुई।
बांग्ला संगीत में योगदान : बांग्ला संगीत में भी मन्ना डे का योगदान काफी महत्वपूर्ण है। बाजे गो बीना, कॉफी हाउसेर सेई आड्डा टा नेई आज आर नेई, आमि जे जलसाघरे यह गीत कोलकाता क्यूं पूरे देश में जहां जहां बांग्ला भाषा का चलन है वहां लोगों की जुवान पर बने हुए हैं। संगीत की दुनिया में मन्ना डे की भूमिका के बारे में जितना कहां जाए कम है।
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