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चाह है तो राह है

भावनाओं में शब्दों
भावनाओं में शब्दों
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चाह है तो राह है मशहूर नृत्यांगना सुधा चंद्रन ने इस कहावत को सच साबित करने में कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी है। वर्ष 1981 में तामिलनाडु के त्रिची में हुए एक हादसे में सुधा के दाहिने पैर में गंभीर चोट आई। इस हादसे ने एक बार के लिए तो सुधा की जिंदगी ही बदल दी लेकिन सुधा ने हार नहीं मानी।

सुधा ने डांस क्लासेस जाना नहीं छोड़ा। 17 साल की उम्र में ही सुधा ने 75 स्टेज परफॉरमेंस दिए। सुधा चंद्रन का बचपन से ही नृत्य के प्रति एक झुकाव था। इसी झुकाव को देखते हुए उनके पिता ने उन्हें एक नृत्य स्कूल में भर्ती कराया और औपचारिक शिक्षा में भी नृत्य को एक हिस्सा बना लिया।

इस दौरान उनके पैर की हालत बिल्कुल ठीक नहीं थी। डॉक्टरों की एक छोटी सी गलती ने सुधा की पूरी जिंदगी ही बदल दी। उसका दाहिना पैर बिल्कुल सड़ चुका था। सुधा की हालत एकलव्य जैसी हो गई थी।
कई सालों बाद जब सुधा को एक अप्राकृतिक काठ के पैर के बारे में पता चला तो वह अपने माता पिता को लेकर जयपुर चली गई। वहीं सुधा ने अपने पैर का इलाज कराया। धीरे धीरे वह अप्राकृतिक पैर से चलने की कोशिश करने लगी। सुधा को नृत्य मयूरी व नव ज्योती के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया।
पैर के इलाज के बाद जब सुधा ने अपना पहला स्टेज परफॉरमेंस दिया तो उनके पैर लडख़ड़ाने लगे। परफॉरमेंस खत्म होने के बाद पूरा हॉल तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंजने लगा। ऐसे में सुधा का आत्मविश्वास कई गुणा बढ़ गया। इसके बाद सुधा ने कई टीवी सिरियल में भी काम किया है। वर्ष 1995 में उन्होंने अपने सपनों के सौदागर से शादी की।

पोलियो ग्र्रस्त लोगों की प्रेरणा बनी सुधा
हिम्मते मर्दा तो मदद-ए खुदा इस कहावत पर पूरी खड़ी उतरी सुधा चंद्रन। जिंदगी के ऐसे हालातों से लडऩे के बाद भी सुधा ने कभी हार नहीं मानी और वह पोलियोग्र्रस्त लोगों की भी प्रेरणा बन गई।

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