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एक स्त्री का मां बनना उसका दूसरा जन्म होना कहलाता है। उससे पहले वह सिर्फ एक महिला होती है। मां का जीवन तभी सफल होता है जब उसका शिशु इस दुनिया में अपनी पहली सांस लेता है। मां को वजूद तब मिलता है जब वह अपने बच्चों के जीवन को सही ढांचे में ढालने से लेकर उन्हें सहीं दिशा में ले जाती हैं। बच्चों के व्यक्तित्व को उभारना, उनकी पसंद व नापंसद को समझना तथा समूचे परिवार को एक बंधन में बांधने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है मां।
किसी भी औलाद के लिए मां को सिर्फ मां कहकर पुकारने के लिए ही यह दिन नहीं बना है, बल्कि यह दिन खासकर उन बच्चों के लिए भी हैैं जो घर की दहलीज पार करने के बाद ही मां को भूल जाते हैैं। अपने करियर व अपने भविष्य को लेकर इतने ज्यादा व्यस्त हो जाते है की उनके पास मां को मां कहने का वक्त नहीं होता। उनके लिए यह दिन अहम व खास है क्योंकि अंतत वह इस दिन तो मां की कुर्बानियों को याद करेंगे।
एक सच्चाई यह भी है जिससे हम मूंह नहीं फेर सकते कि आज भी जब हमें दर्द होता है तो सबसे पहले हमें मां ही क्यूं याद आती हैं, क्योंकि वह मां ही है जो हमें जन्म से पहले से जानती हैं। वैसे तो जन्म के बाद सबसे हमारा रिश्ता बन जाता है लेकिन मां के साथ तो जन्म से पहले का रिश्ता होता है। ऐसे में मां का रिश्ता हुआ ना सबसे गहरा व सबसे मजबूत रिश्ता।
दुर्गा सप्तशती में मां के बारे में लिखा है कि मां जितनी सरल होती हैं उनके बच्चें भी उतने ही सरल होते हैैं और मां के साथ बच्चों का रिश्ता उतना ही सरल होता है। कहावत है ना की पुत कुपुत हो सकता है लेकिन माता कुमाता नहीं हो सकती है। मां जल्द ही अपने पुत्रों से प्रसन्न हो जाती है। भले वह जितनी भी गलती करें।
मां शब्द में वह आत्मीयता एवं मिठास छिपी हुई है जो अन्य किसी शब्द में नहीं हैं। इस शब्द में इतना सूकुन है कि इस एक शब्द की पुकार से ही जन्नत मिल जाती है।
मां को खुशिया और सम्मान देने के लिए पूरी जिंदगी भी कम पड़ जाती है। विश्व में मां के सम्मान में मातृ दिवस व मदर्स डे मनाया जाता है। मातृ दिवस विश्व के अलग-अलग प्रांत में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है।
सदियों पुराना है मातृ दिवस का इतिहास:
अमेरिका में मातृ दिवस को एक त्यौहार के रुप में मनाया जाता है। मातृ दिवस का इतिहास सदियों पुराना है। आदि यूनान,जो वर्तमान यूरोपीय सभ्यता का मूल रहा है। बंसत ऋतु के आगमन पर रिहा परमेश्वर की मां साइपिली के सम्मान में मदर्स डे मनाया जाता है। इसी तरह रोम में वहां की देवी-देवताओं की मां जूनो के सम्मान में तीन दिवसीय उत्सव मनाया जाता था। सोलहवीं सदी में इंगलैैंड का इसाई समुदाय ईशु की मां मदर मेरी को सम्मानित करने के लिए यह त्यौहार मनाते है।
आपको बताएं की प्रथम महायुद्ध और उससे पहले फ्रांसीसी क्रुसुइन युद्ध की विभीषिका को देखकर महसूस किया कि दुनिया को ऐसे भीषण समय में सिर्फ कोई बचा सकता हैं तो वह मां की ममता ही है। मां की ममता में वह शक्ति छिपी है। जो महायुद्धों से दुनिया को बचाकर उसे सुंदर बनाएंगी। 10 मई 1908 को अन्ना की मां की तीसरी पुण्यतिथि पर अन्ना मारिया रीव्स जारविस की याद में मदर्स डे मनाया गया। अन्ना की कठिन मेहनत के बाद तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने मई में मां के सम्मान में एक दिन के अवकाश के सार्वजनिक घोषणा की। उन्हें लगता है कि श्रद्धा व सम्मान के साथ मां का सशक्तीकरण होना चाहिए। मातृत्व शक्ति के प्रभाव से युद्धों की विभीषिका रुके। इसलिए हर साल मी के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाता है।
क्या आपको पता है कि अमेरिका की एक कवयित्री और लेखिका जुलिया वार्ड होव ने 1870 की दस मई को मां के नाम पर समर्पित करते हुए कई रचनाएं लिखी और तभी से दुनियाभर में मातृ दिवस मनाया जाने लगा।
भारत में मातृ दिवस:
भारतीय संस्कृति में मातृ शक्ति का प्राचीन काल से ही महत्व रहा है। साल भर में चार नवरात्रा जिसमें क्वार के शारदीया,चैत्र के वासंतिक में नौ-नौ दिन तक मां के विभिन्न रुपों की आराधना की जाती है। इसके साथ ही माघ व आषाढ़ में गुप्त नवरात्रि आती है।
मातृ दिवस मनाने का तरीका:
प्राचीन रोमवासी मेट्रोनालिया नाम से एक छुïट्टी मनाते थे। जो जूनो को समर्पित था। यूरोप व ब्रिटेन में कई परंपराएं प्रचलित है।
अंतरराष्ट्रीय इतिहास और मान्यताएं:
कैथोलिक धर्म में इस दिन छुïट्टी वर्जिन मेरी के श्रद्धांजलि देने की प्रथा के साथ जुड़ा हुआ है। जबकि हिंदू परंपरा में इसे माता तीर्थ औंशी कहा जाता है।
मातृ दिवस उत्तरी अमेरिका और यूरोप सबसे पहले विकसित हुई है। जब यह अन्य देशों और संस्कृतियों के द्वारा अपनाया गया था तो इसे दूसरा अर्थ दिया गया। अलग-अलग धार्मिक ,ऐतिहासिक और पौराणिक घटनाओं से जुड़े थे और अलग तारीखों में मनाये जाते थे। मां को गुलनार के फूल बहुत पसंद आते हैैं। इसलिए इस दिन मां को गुलनार के फूल का उपहार दिया जाता है।
माता तीर्थ औंशी का अर्थ है माता अर्थात मां व तीर्थ मतलब तीर्थयात्रा। यह त्यौहार जीवित व स्वर्गीय माताओं के स्मरणोत्सव और सम्मान माताओं के स्मरण में मनाया जाता है।
नेपाल में माता तीर्थ औंशी यात्रा के संबंध में एक कहावत है कि प्राचीन समय में भगवान श्री कृष्ण की मां देवकी प्राकृतिक दृश्य देखने के लिए घर से बाहर निकल गई। उन्होंने कई स्थानों का दौरा किया और घर लौटने में बहुत देर कर दी। भगवान कृष्ण अपनी मां के ना लौटने पर दुखी हो गए, वह अपनी मां की तलाश में कई स्थानों पर घुमते रहे परंतु उन्हें सफलता नहीं मिली। अंत में जब वह मां माता तीर्थ कुंड पहुंचे तो उन्होंने देखा कि उनकी मां तालाब के फुहार में नहा रही है। भगवान श्री कृष्ण अपनी मां को देख कर बहुत खुश हुए और मां को कहने लगे कि मां मुझे ऐसे छोड़ के मत जाया करो। मां ने कृष्ण से कहा कि जहां वह नहा रही है उस जगह को बच्चों की उनकी स्वर्गीय माताओं से मिलने का पवित्र स्थल ही रहने दिया जाए। तबसे यह स्थल उन बच्चों के लिए उनकी मां को याद करने का एक स्मरणीय स्थल बन गया।
नेपाल में ही एक और कहानी है। एक भक्त ने तालाब में अपनी मां की छवि देखी और उसमें गिरकर मर गया। आज भी वहां एक छोटे से तालाब को चारों तरफ से लोहे की सिकल से बांध दिया। पूजा करने के पश्चात तीर्थयात्री वहां पूरे दिन गाने बजाने का संपूर्ण आंनद उठाते है।
मौजूदा दौर में मां की छवि:
मां में पूरी दुनिया समाई है। ममता का सागर है मां। लेकिन आज के दौर में स्थिति कुछ ऐसी हो गई है मां को मां कहने का वक्त नहीं है हमारे पास। रोजमर्रा की जिंदगी में भागते भागते हम यह भूल जाते है कि एक मां है जो घर पर हमारा आज भी इंतजार करती है,जिनके हाथ आज भी हमारी दुआओं के लिए पहले उठते हैैं। जिन्होंने हमें इस सभ्य समाज में खड़े रहने के काबिल बनाया। समाज की हर चुनौतियों से लडऩे की हिम्मत दी। कितनी रातें कितने दिन त्याग और बलिदान में गुजारे हैैं। उनके त्याग व प्यार की कीमत चुकाने के लिए एक दिन नहीं सदियां भी कम पड़ जाएंगी।
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